उसके विकास के लिए बदलनी है तो लोगो को सोच, उनका नजरिया जो कल्पना करना ही छोड चुका है ।
अगर बच्चो तथा लोगो को शिक्षित वातावरण के साथ-साथ हम उन्हे सामाजिक तथा रचनात्मक बनाये तभी सम्भव है विकास हमारे देश का , हमारे समाज का और हमारे नजरिये का
आज हम लडते है क्योकि हमे डर है अपने बजूद का ना कि फिक्र समाज की,देश की, संस्कृति की।
आज हम दौड रहै है पैसे के लिए आधुनिकता की अंधी दौड मे ठीक उसी प्रकार जैसे हम नया घर बनाते है और उसमे सजावट या अनोखेपन ध्यान नही देते ठीक अपने जीवन की तरह।
आज अन्य देशो की बात करे तो हम पाते हैं कि वे आधुनिक है और हो रहे है परन्तु उसके साथ-साथ। वे अपनी संस्कृति तथा विरासत के संगम को अपने जीवन मे उतार रहै है। पर हम कही न कही दूर होते चले जा रहे है।
पर हम आज अपने बचाव मे तरक्की(बदलाव ) का बहाना बनाते है । पर शायद मेरा मानना यह है कि बदलाव समय की तरह है उसका रुकना कही नही है । वो पीढी दर पीढ़ी चलती रहेगी।
हमे अपने लिए आधुनिकता तथा सांस्कृतिक विरासत का मेल बनाकर अपने जीवन मे उतारना होगा।
आज अगर हम विकास की बात करे तो विकास केबल सरकार की ही जिम्मेदारी नही बल्कि हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है अगर हम ठान ले और हम धर्म, सामाजिक भेदभाव तथा अपनी पिछड़ी सोच को अलग रखकर सोचे तो हमे एक नया भारत दिखाई देगा जो शायद कभी गांधी जी तथा नेहरू जी खोजा करते थे।
विकास जनता को करना है अपनी मेहनत से, लगन से और शायद सोच का भी जो पिछड़े देशो से भी पिछड़ चुकी है।
आज हमे सुधारना होगा। अगर हम चाहते है कि मुक्ती मिले बेरोजगारी से ,
धार्मिक भेदभाव से, कट्टरता से,
उन सामाजिक दरिदो से ताकि एक और निर्भया ,आसिफा शिकार न बने उन बहसी राक्षसो का।
ताकि एक और कैप्टन उमर फैयाज न मारा जाये, एक और पुलवामा हमला न हो ताकि एक और मासूम अनाथ न हो ताकि कोई गरीब भूखा न सोए , कोई किसान फांसी पर न लटके। ताकि बहू-बेटिया सुरक्षित घूम सके , ताकि हम सब मिलकर रह सके। हमे वदलना है वोट को ,सोच को।
बन्द करना होगा वोट देना धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर, समाज के नाम पर।
जिस दिन हम वोट देगे देश के नाम पर ,बहू-बेटियो के नाम पर, सैनिको के नाम पर, विकास के नाम पर, युवाओ के नाम पर उस दिन से न कोई नौकरी के लिए भटकेगा, न कोई शहीद होगा, न कोई बहू-बेटियो की तरफ नजर उठाकर देखेगा, न कोई भूखा सोएगा।
फिर कोई वादा नही विकास होगा, कोई बहाना नही ,सिर्फ काम होगा तभी भारत का सम्पूर्णतय विकास संभव है ।
तभी भारत आधुनिकता की ओर बढ़ सकता है ।
ॐ卐☪✝ मै भारत हू
आज हम लडते है क्योकि हमे डर है अपने बजूद का ना कि फिक्र समाज की,देश की, संस्कृति की।
आज हम दौड रहै है पैसे के लिए आधुनिकता की अंधी दौड मे ठीक उसी प्रकार जैसे हम नया घर बनाते है और उसमे सजावट या अनोखेपन ध्यान नही देते ठीक अपने जीवन की तरह।
आज अन्य देशो की बात करे तो हम पाते हैं कि वे आधुनिक है और हो रहे है परन्तु उसके साथ-साथ। वे अपनी संस्कृति तथा विरासत के संगम को अपने जीवन मे उतार रहै है। पर हम कही न कही दूर होते चले जा रहे है।
पर हम आज अपने बचाव मे तरक्की(बदलाव ) का बहाना बनाते है । पर शायद मेरा मानना यह है कि बदलाव समय की तरह है उसका रुकना कही नही है । वो पीढी दर पीढ़ी चलती रहेगी।
हमे अपने लिए आधुनिकता तथा सांस्कृतिक विरासत का मेल बनाकर अपने जीवन मे उतारना होगा।
आज अगर हम विकास की बात करे तो विकास केबल सरकार की ही जिम्मेदारी नही बल्कि हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है अगर हम ठान ले और हम धर्म, सामाजिक भेदभाव तथा अपनी पिछड़ी सोच को अलग रखकर सोचे तो हमे एक नया भारत दिखाई देगा जो शायद कभी गांधी जी तथा नेहरू जी खोजा करते थे।
विकास जनता को करना है अपनी मेहनत से, लगन से और शायद सोच का भी जो पिछड़े देशो से भी पिछड़ चुकी है।
आज हमे सुधारना होगा। अगर हम चाहते है कि मुक्ती मिले बेरोजगारी से ,
धार्मिक भेदभाव से, कट्टरता से,
उन सामाजिक दरिदो से ताकि एक और निर्भया ,आसिफा शिकार न बने उन बहसी राक्षसो का।
ताकि एक और कैप्टन उमर फैयाज न मारा जाये, एक और पुलवामा हमला न हो ताकि एक और मासूम अनाथ न हो ताकि कोई गरीब भूखा न सोए , कोई किसान फांसी पर न लटके। ताकि बहू-बेटिया सुरक्षित घूम सके , ताकि हम सब मिलकर रह सके। हमे वदलना है वोट को ,सोच को।
बन्द करना होगा वोट देना धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर, समाज के नाम पर।
जिस दिन हम वोट देगे देश के नाम पर ,बहू-बेटियो के नाम पर, सैनिको के नाम पर, विकास के नाम पर, युवाओ के नाम पर उस दिन से न कोई नौकरी के लिए भटकेगा, न कोई शहीद होगा, न कोई बहू-बेटियो की तरफ नजर उठाकर देखेगा, न कोई भूखा सोएगा।
फिर कोई वादा नही विकास होगा, कोई बहाना नही ,सिर्फ काम होगा तभी भारत का सम्पूर्णतय विकास संभव है ।
तभी भारत आधुनिकता की ओर बढ़ सकता है ।
ॐ卐☪✝ मै भारत हू
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