हिन्दी की दशा और दिशा


हिन्दी भाषा न केवल देश की बड़ी भाषा है बल्कि यह
दिल से भी बहुत उदार है। इसमे पंजाबी, मराठी, गुजराती, भोजपुरी आदि भारतीय भाषाओ के साथ लेकर  चलने की अद्भुत क्षमता है। आजादी के सिपाही और हमारे पूर्वज हिन्दी को माता का दर्जा देते थे। लेकिन आज उसकी दिशा और दशा दोनो ही चिंता का विषय है।
हिन्दी भाषा बोलने वालो की संख्या लगभग सत्तर से अस्सी करोड़ है। विश्व की तीसरी  सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा।
संस्कृति की प्रमुख प्रतीक हिन्दी भाषा जिसने बहुत कम समय मे भारत के जाने माने कवियो, लेखको, उपन्यासकारो ,कलाकारो को पहचान दिलाई।
भारत की अर्थव्यवस्था मे भी हिन्दी का बहुत बड़ा योगदान है।
विश्व का दूसरा सबसे बड़ा फिल्म उद्योग इसी भाषा पर आधारित है।
हिन्दी हिन्दुस्तान की भाषा है।
                                       कभी गांधी जी ने इसे जनमानस की भाषा कहा तो कभी इसी हिन्दी को अमीर खुसरो ने अपनी भावना प्रस्तुत करने का साधन बनाया लेकिन क्या यह किसी
दुर्भाग्य से कम नही कि जिस हिन्दी को आजादी के सिपाहियो
ने, महान लेखको ने कर्मभूमि बनाया। उसे ही आज देश मे राष्ट्रभाषा का नही बल्कि  राजभाषा का ही दर्जा हासिल है।
कुछ तथाकथित राष्ट्रवादियों की बजह से हिन्दी को उसका सम्मान नही मिल सका जिसकी हकदार थी।
संसद भी जिम्मेदार है क्योकि आवाजे उठी पर चदं वोटो के खातिर अनसुना कर दिया गया।
राजभाषा अधिनियम की धारा 3 के तहत ये कहा गया कि सभी सरकारी दस्तावेजो को अग्रेजी मे लिखा जाएगा और हिन्दी मे अनुवादित किया जाएगा।
आज हिन्दी को इस दशा मे पहुंचाने बाले हम और आप है।
हम शान से कहते है what's up bro तो कद बढ जाता है
अगर यही हम हिन्दी मे बोले तो प्राचीन हॉ गर्व है। हमे अपनी प्राचीनता पर।
हमलोगो ने उपेक्षित करना शुरू कर दिया है कही इसका वजूद ही न खत्म हो जाए ।
अगर आपकी भाषा खत्म हो गई तो आपका बजूद भी खत्म हो जाएगा।
आज आप पहचाने जाते हो हिन्दुस्तान ,हिन्दी से
आपका बजूद उन विदेशी भाषाओ मे नही आपकी तहजीब मे है आपकी संस्कृति मे है,अपनी भाषा मे है।
यहॉ के लोगो मे है।
             फिर चाहे हिन्दू हो या मुसलमान।
                भगवान् चाहे राम हो या रहीम
सिर दोनो के सामने झुकते है । तो फिर क्यो ये दंगे , धार्मिक भेदभाव, कट्टरता ।
  जो आपको लड़ाते है भाषा के नाम पर कहते है कि हिन्दी थोपी गई तो देश जला देगे,उन्हे मैंने हिन्दी मे जय हिंद का नारा लगाते देखा है ।
मंदिरो-मस्जिदो मे सिर झुकाते देखा है तो क्यो लड़ते है उनके लिए आपस मे ।   

    

                    हिन्दी न किसी जाति की भाषा है 
                            न धर्म  विशेष की
                       ये जन संवाद की भाषा है 
                      यह  एक  राष्ट्र  की  भाषा  है
      


                                  मै भारत हू।


No comments:

Post a Comment

The life without experiences

Political satire blog के इतर आज में कुछ लिखने जा रहा हूं  अपने personal  experiences हां मेरी उम्र कम है अभी आप लोगों जितना स्ट्रगल नहीं किय...